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जीवनयापन


जीवनयापन
जनसंख्या: २००१ की जनगणना अनुसार गाँव की आबादी ५,५६३ है, जिसमें २,८३९ पुरूष और २,७२४  स्त्रियाँ हैं। लगभग ४ किमी² क्षेत्रफल वाले इस गाँव में करीब ४०० परिवार बसते हैं जिनमें बहुसंख्य हिंदू के अतिरिक्त मुस्लिम भी हैं। बसावट प्रकीर्ण किस्म का है जिसमें परंपरागत रुप से बननेवाले कच्चे मकानों के अलावे नए पक्के भवन की बहुतायत है। केन्द्रीयकृत अधिवास के विपरित गाँव में लोग अपने छोटे भूखंड में घर बनाकर रहते हैं। नौकरीपेशा अथवा अस्थायी मजदूरी करनेवाले कई लोग बाहर रहते हैं।
सामाजिक जीवन: वर्ण व्यवस्था के अधीन बँटी विभिन्न जातियों की संख्या यहाँ के जनजीवन का महत्वपूर्ण घटक है। गाँव भूमिहार, पंडित बहुल है लेकिन नाई,  नोनी, बरई, यादव, कहार, दास, मुसहर जैसी अन्य पिछडी जातियाँ भी पूरक तरीके से वास करती हैं। कुछेक मुस्लिम परिवार के हैं। रहन-सहन के स्तर के मामले में विभिन्न जातियों में खास अन्तर नहीं है। पारिवारिक व्यवस्था पितृसत्तात्मक एवं एकल है। कभी संयुक्त परिवार को जीवन शैली मानकर चलने वाले इस गाँव में अब माँ-पिता के रहते ही बेटे शादी के बाद अलग हो लेते है। शादियाँ हलाँकि अभी भी पिता की मर्जी से स्वजातीय समुदाय में ही होती है। विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है औ‍र मुस्लिम परिवारों में भी तलाक की बात सोचना एक सामाजिक अपराध समझा जाता है। शादी विवाह एवं कर्मकांडों के लिए पुरोहित पास के गाँव के आते हैं। बाल काटने तथा संस्कार-कार्यों में सहायता के लिए आवश्यक नाई, माली, कुम्हार आदि यजमान के बुलाए जाने पर पडोस के गाँव से आते हैं। गाँव के लुहार, जो कभी यहाँ के किसानों के लिए कृषि उपकरण बनाकर आत्मनिर्भर ग्रामीण व्यवस्था की अवधारणा को पूर्ण करते थे, अब अपनी परंपरागत पेशे को छोड चुके हैं। कुछ समय पूर्व यहाँ की परंपरागत जीवन शैली का स्वरूप तेजी से बदला है। तकनीकी परिवर्तनों एवं बेहतर संचार सुविधाओं ने बदलाव की प्रक्रिया को तेज किया है। बढ्ती आर्थिक जरुरतों के आगे घुटने टेक रही जाति व्यवस्था यहाँ के सामाजिक ताना-बाना को भी अपना शिकार बना रही है। आपसी विवाद को सुलझाने के लिए बनी पंचायत का पुराना स्वरूप गायब हो चुका है। मतदान को द्वारा चुनकर बननेवाली नई पंचायत अब धडेबन्दी का अखाडा एवं सरकारी योजनाओं का व्यक्तिगत फायदा उठानेवाली संस्था बन गयी है।
धार्मिक जीवन: गाँव में बहुसंख्यक आबादी हिन्दू है। सनातन धर्म के लगभग सभी प्रमुख पर्व एवं त्योहार यहाँ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। होली, दिवाली, दुर्गापूजा, रामनवमी, छठ पर्व, सरस्वती पूजा में लोग अपनी खुशी जाहिर करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। कुछेक मुस्लिम परिवारों में इस्लामिक त्योहार मनाए जाते हैं। मुहर्रम मनाने में भी हिंदू लोग पीछे नहीं रहते। मुहर्रम के जुलूस में जिस तरह सारा गाँव बाजार में एकत्रित होकर अपनी शिरकत जाहिर करता है वह देखते बनता है। छठ पूजा नि:संदेह ही सबसे गहरी आस्था एवं पवित्रता के साथ मनाया जाता है। इस दिन सारा गाँव पोखर पर जमा होकर भगवान सूर्य को सांध्यकाल तथा प्रात:काल का अर्घ्य देते हैं। बिहार की ग्रामीण संस्कृति को गहरे तौर पर रेखांकित करनेवाला पर्व चकचंदा, गोवर्धन पूजा, आर्द्रा उत्सव, वट सावित्री आदि भी मनाया जाता है। महिलाएँ तीज एवं [जीवित्पुत्रिका व्रत/जीतीया] बहुत ही धार्मिक उत्साह के साथ मनाती हैं।

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