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Friday, September 17, 2010

मनोज बाजपेयी एक गाँव का आदमी है

इनसाइड स्टोरी संवाददाता


मनोज बाजपेयी न केवल एक असाधारण अभिनेता हैं अपितु असाधारण व्यक्तित्व भी हैं।
हिन्दी सिनेमा में मनोज बाजपेयी एक प्रयोगकर्मी अभिनेता रहे है।
विविधता उनकी पहचान है, यही कारण है कि बैंडिट क्वीन, तमन्ना, सत्या, शूल,
जुबैदा, अक्स, पिंजर, रोड, मनी है तो हनी है जैसी फिल्मों में अलग अलग किस्म की
भूमिकायें निभा कर मनोज बाजपेयी एसे कलाकार के रूप में स्थापित होते हैं जो किसी
एक प्रकार में नहीं बंधता।
बिहार के पश्चिमी चंपारण के छोटे से गांव बेलवा में जन्मे मनोज बाजपेयी की आरंभिक
कर्मभूमि दिल्ली रही है जहाँ उन्होंने रामजस कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की।
दिल्ली थियेटर से अभिनय की शुरुआतकर मनोज बाजपेयी नें आकाश को छुआ है।
मनोज जी! आपके अनुसार मनोज बाजपेयी क्या है?
मनोज बाजपेयी: मनोज बाजपेयी क्या है?... मनोज बाजपेयी एक गाँव का आदमी है
जो एक अभिनेता है, एक अभिनेता रहने की कोशिश करता है और उस अभिनेता के
साथ जस्टिफ़ाई करने की कोशिश करता है।

(मनोज बाजपेयी एक गाँव का आदमी है जो एक अभिनेता है, एक अभिनेता रहने
की कोशिश करता है और उस अभिनेता के साथ जस्टिफ़ाई करने की कोशिश करता है।)
आपने बहुत सी फिल्में की हैं. आपका पसन्दीदा रोल कौनसा रहा आपकी फिल्मों में?
मुश्किल होता है किसी भी अभिनेता के लिये ये कह पाना, लेकिन ये है कि चाहे वो "शूल" हो,
चाहे "बैंडिट क़्वीन" हो या फिर "तमन्ना" हो, "सत्या" हो या "कौन" हो, ये सब बहुत सोच समझ
के ली हुई फिल्में थीं और बड़ी मेहनत से की गई फिल्में थीं। फिर भी मैं कह सकता हूँ कि "1971" मेरे दिल के बहुत करीब है और "स्वामी"
बॉलीवुड के आपके शुरुआती दिनों में ही आपको महानायक अमिताभ बच्चन के
साथ अक्स फिल्म में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म से जुडा कोई ऐसा 
 वाकया जो आप पाठकों को बताना चाहेंगे।
अक्स फिल्म के साथ जुडा एक-एक वाकया मेरे लिये अनुभव है। महानायक अमिताभ बच्चन
के साथ कार्य करना ही ऐसा अनुभव था जिसे मैं हमेशा याद रखना चाहूँगा।
पात्र के चयन में आप किस बात को अधिक महत्व देते हैं?
उसका आलराउण्ड अस्पेक्ट हो, डाइमेन्शन उसका राउण्ड हो। कहीं से भी वो पूरी तरह से
सिर्फ हीरो न दिखाई दे या सिर्फ विलैन न दिखाई दे। एक ग्रे शेड उसमें हमेशा रहे, उसकी
गुंज़ाइश रहे और एक अच्छी स्क्रिप्ट का हिस्सा हो।
मनोज जी! फिल्मों से थोड़ा हट कर हम नाटक की तरफ आते हैं, नाटक और
फिल्मों के बीच एक कलाकार के तौर पर आप क्या अंतर पाते हैं?
मेरे हिसाब से कभी कोई फ़र्क़ नहीं रहा है क्योंकि मैंने जिस समय नाटक किया,
उसका साइंटिफिकली काफी विकास हो चुका था। आजकल के नाटक उस हिन्दी
शब्द 'नाटकीय' से अलग हो चुके हैं। कहीं न कहीं बहुत जीवन्त होते हैं, रियलिज्म
के बहुत करीब होते हैं।
फिर भी मनोज जी, ऐसा नहीं लगता कि नाटक को वो स्थान नहीं मिल पाया
जो उसे मिलना चाहिये. रंगमंच का क्या भविष्य है?
रंगमंच का भविष्य अभी हाल-फिलहाल तो जैसा है वैसा ही रहेगा। न उसको कोई सपोर्ट है,
न उसको देखने वाले हैं। जिस तरह से टेलिविजन का विस्तार हुआ है, उससे मिडिल क्लास ने
तो घर से निकलना ही बंद कर दिया है। थियेटर कुछ एक चुनिंदा लोगों के शौक़ के कारण ज़िंदा
थी और ज़िंदा रहेगी।
आपके अनुसार नाटक का पतन हो रहा है या ये जीवित रहेगा?
जीवित रहेगा. थियेटर कभी भी खत्म नहीं हो सकता। जिस समय से इंसान पैदा हुआ है तब
से थियेटर है और हमेशा रहेगा। लेकिन हाल-फिलहाल में उसका भविष्य यदि कहें कि ब्राडवे
की तरह हो जायेगा या फिर ये कहें कि वो लंदन के थियेटर की तरह से हो जायेगा या पेरिस के
थियेटर की तरह से हो जायेगा; तो ये कहना अभी मुश्किल है।
दिल्ली थियेटर से आप कभी लंबे समय तक जुड़े रहे हैं. आपका इसके संदर्भ में
क्या विचार है?
दिल्ली थियेटर मेरे हिसाब से काफी प्रोग्रैसिव थियेटर सर्कल है लेकिन दुख इस बात का है कि
वहाँ पे उसे दर्शक नहीं मिल पाते हैं।
जन-नाट्य मंच से जुडे आपके अनुभव?
जननाट्यमंच से मैं अधिक तो नही जुडा रहा लेकिन कुछ एक नुक्कड नाटक मैने किये हैं।
हाँ सफदर हाशमी से मेरी मित्रता थी, जिनकी हत्या भी हो गयी थी। नुक्कड नाटक अभिनेता
को दर्शकों से सीधे जोडता है यह अनुभव मैने उस समय किया।
दिल्ली रंगमंच पर आपका एक नाटक “नेटुआ” काफी प्रसिद्ध हुआ था। ये भी सुनने में
आया था कि आप इस पर एक फिल्म भी करने वाले हैं। क्या ये सच है?
यह मेरी योजना अवश्य थी किंतु अब मैने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
यह बहुत अच्छा नाटक है और अब कोई नया कलाकार ही इसे करेगा।
फिल्म और साहित्य के बीच आप कैसा संबंध पाते हैं, दोनों के बीच पैदा होती
दूरी के लिये किसे जिम्मेदार ठहरायेंगे?
फिल्म और साहित्य के बीच आज दूरी आ गयी है, ऐसा होना नहीं चाहिये। इस दूरी के
लिये फिल्मकारों को ही दोषी ठहराना होगा। लेकिन ऐसा नहीं है कि अच्छे साहित्य पर
फिल्में बनायी गयी तो वे चलेंगी नहीं या लोग उसे पसंद नहीं करेंगे।
क्या साहित्यिक पृष्ठभूमि पर आज भी अच्छी और सफल व्यावसायिक फिल्म 
बनायी जा सकती है?
बिलकुल बनायी जा सकती हैं और हाल फिलहाल तक बनती भी रही हैं। मैं अपनी फिल्म
पिंजर का जिक्र करना चाहूँगा जो कि एक प्रसिद्ध उपन्यास पर बनी है और अपनी पटकथा
के कारण दर्शकों के द्वारा भी बहुत सराही गयी। साहित्य और सिनेमा को किसी भी तरह
से अलग कर के नहीं देखा जा सकता। अच्छे साहित्य पर बनने बाली फिल्मों को दर्शकों
की प्रशंसा अवश्य मिलेगी।
आपने बैरी जॉन के मार्गदर्शन में स्ट्रीट चिल्ड्रेन के साथ काफी काम किया है। 
उन बच्चों के साथ गुजारे गये लम्हों ने आपको बेहतर अभिनेता और बेहतर इंसान 
बनने में कितनी मदद मिली।
हाँ मैं इन पलों को अपने जीवन के श्रेष्ठतम क्षणों में रखता हूँ। यह सही है कि इन क्षणों ने
मनोज बाजपेयी को निश्चित तौर पर बेहतर इंसान बनने में मदद की।

कुछ मित्रों के प्रोत्साहन से मैंने भी अपना ब्लॉग बना लिया और अब जितना भी समय
मिलता है, इस माध्यम से अपने चाहने वालों से रूबरू होने की कोशिश करता रहता हूँ।
यह अच्छा माध्यम है। जहाँ लोग एक अभिनेता से इतर मनोज के व्यक्तित्व को या उसके
जीवन के दूसरे पहलू से परिचित हो सकते हैं। यहाँ मैं उन विषयों पर भी बात कर सकता
हूँ जो मैं सोचता रहता हूँ या मेरे भीतर विचार की तरह हैं। ब्लॉगिंग का सुनहरा भविष्य है
तथा यह एक अच्छा माध्यम है अपने विचारों को सीधे पहुँचा सकने का। मुझे ब्लॉगिंग में
आनंद आ रहा है।
आप एक ब्लॉगर भी हैं .. हिन्दी में ब्लॉग लिखने वाले आप पहले सेलीब्रिटी हैं। 
आपको ब्लॉग बनाने की प्रेरणा कैसे मिली और आपके विचार से ब्लॉगिंग 
का भविष्य क्या है ?
कुछ मित्रों के प्रोत्साहन से मैंने भी अपना ब्लॉग बना लिया और अब जितना भी समय
मिलता है इस माध्यम से अपने चाहने वालों से रूबरू होने की कोशिश करता रहता हूँ।
यह अच्छा माध्यम है। जहाँ लोग एक अभिनेता से इतर मनोज के व्यक्तित्व को या उसके
जीवन के दूसरे पहलू से परिचित हो सकते हैं। यहाँ मैं उन विषयों पर भी बात कर सकता हूँ
जो मैं सोचता रहता हूँ या मेरे भीतर विचार की तरह हैं। ब्लॉगिंग का सुनहरा भविष्य है तथा
यह एक अच्छा माध्यम है अपने विचारों को सीधे पहुँचा सकने का। मुझे ब्लॉगिंग में आनंद आ रहा है।
अपने चाहने वालों को कृपया अपने आने वाली फिल्म के बारे में कुछ बताएँ
मेरी आने वाली फिल्म का नाम है जुगाड। जुगाड दिल्ली में हुई एम.सी.डी की सीलिंग के दौरान
की सत्य घटना पर आधारित फिल्म है। इसमें मेरी भूमिका एक विक्टिम की है।
हमें खबर मिली है की मुंबई की एनिमेशन कंपनी माया एंटरटेनमेंट लिमिटिड (एमईल)
ने आपको भगवान राम के चरित्र के लिये आवाज देने का प्रस्ताव रखा है.. क्या यह सच
है और आप इसे किस प्रकार देख रहे हैं?
जी आपकी खबर बुलकुल सच है बल्कि यह कार्य मैंनें अधिंकांश कर भी लिया है। राम के
चरित्र को आवाज देते हुए मैने यह ध्यान रखने की कोशिश की कि मेरी आवाज राम जैसे
महान चरित्र के अनुकूल हो सके। यह भिन्न तरह का अनुभव था जो मेरे सामान्य कार्य
करने के तरीके और प्रकार से बिलकुल ही भिन्न था।
हाल में मुम्बई पर हुए आतंकी हमले पर आप क्या कहना चाहेंगे? आपने अपने 
ब्लॉग पर भी इस विषय पर चर्चा की है। अब तो इस विषय पर राजनीति भी
आरंभ हो गयी है।
मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों की कडी आलोचना होनी चाहिये। लोगों की प्रतिक्रियायें
जो आ रही हैं वह जायज हैं। भारत पर इस तरह का हमला करवाने वालों को पता चलना
चाहिये कि हम कोई कमजोर मुल्क नहीं है। इस हमले में मारे गये सभी शहीदों और निर्दोश
नागरिकों को मेरी श्रद्धांजलि है। एसी घटनायें नहीं होनी चाहिये।

मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों की कडी आलोचना होनी चाहिये। लोगों की प्रतिक्रियायें
जो आ रही हैं वह जायज हैं। भारत पर इस तरह का हमला करवाने वालों को पता चलना
चाहिये कि हम कोई कमजोर मुल्क नहीं है। इस हमले में मारे गये सभी शहीदों और निर्दोश
नागरिकों को मेरी श्रद्धांजलि है। एसी घटनायें नहीं होनी चाहिये।
राजनीति को आज या कल तो आरंभ होना ही था। यह राजनेताओं का काम है, लेकिन नेताओं
को भी दोष दे कर क्या होगा? अब लोगों को समझने की बारी है,पाकिस्तान की जनता को भी
समझना होगा इस राजनीति को। मेरा अपना मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितना
दबाव बना सकते हैं, पाकिस्तान पर, वो बनाया जाए ताकि पाक में जो भी आतंकी ट्रैनिंग कैंप
है, वो खत्म हो।

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