Wednesday, November 17, 2010
इमारत हादसा: वो मलबे के नीचे से फोन करते रहे बेटा ‘मुझे बचा लो’
दूसरों की गलती से अपनों को मौत के मुंह में जाते देखने की बेबसी क्या होती है ये विक्रम से बेहतर कोई नहीं जानता। विक्रम के पिता ने अपने दोस्त के मोबाइल से हादसे वाली रात एक बजे फोन किया कि हम मलबे के नीचे दबे हैं, हम किसी चीज के नीचे हैं हमे बचा लो।
अपने पिता के शब्द सुनकर विक्रम के हाथ पांव फूल गए, लेकिन वो कुछ कर नही सकता था। मलबे में तब्दील हुई पांच मंजिले सबके सामने थी लेकिन उसमे उस आवाज का पता लगाना बेहद मुश्किल था जो जिंदगी मांग रही थी। उसने पुलिस से अपने पिता को जल्द से जल्द निकालने की गुहार की इतने में ही पता चला कि राम मनोहर लोहिया में उसकी घायल बहन की मौत हो गई।
इसके बाद चाचा, चाची. और उनके दो बच्चों की भी मौत की खबर आई। मंगलवार शाम 4 बजे तक विक्रम को पिता की खबर नहीं मिली, जिस न0 से फोन आया था अब वो भी लगातार इंगेज जाने लगा शाम 6 बजे आखिरकार उसकी एक पीड़ा का अंत हो गया कि उसके पिता तड़प रहे हैं लेकिन उनकी मौत की पीड़ा का दर्द अब ये परिवार पूरी उम्र सहेगा।
अपनी निशानी छोड़ जा...
दो दिन पहले हुए इमारत हादसे में ये कुछ चीजे मिली जिन्हे कभी इस घर में रहने वाले लोगों ने जी जान से सहेजा होगा। ये कॉपी मुकेश कुमार की है। मुकेश कुमार हमेशा 12 वीं का छात्र रहेगा, इन फोटो में दिखने वाले बदनसीबों को अब कभी इन विजिटिंग कार्डों पर लिखे न0 की जरूरत नही होगी, ग्लोब में खड़ी आकृती शाश्वत रूप से ऐसे ही प्रेम से एक दूसरे को देखती रहेंगी। लेकिन इन सबको संजोने वाले अब इस दुनिया में नही हैं।
ऐसी न जाने कितनी निशानियां और कहानियां इस मलबे के ढेर के नीचे दम तोड़ चुकी होंगी।
इन जिंदगियों को कहानी बनाने में एक बिल्डर का हाथ नहीं है इसके लिए सरकारी मशीनरी में व्याप्त भ्रष्टाचार भी जिम्मेदार है।
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